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शिक्षा का व्यवहारिक स्वरूप ज्ञान

शिक्षा का व्यवहारिक स्वरूप ज्ञान

शिक्षा का व्यवहारिक स्वरूप ज्ञान  09/01/2025 11:21:50 AM   शिक्षा का व्यवहारिक स्वरूप ज्ञान   administrator

एक लोक कथा के अनुसार एक आश्रम में एक संत जी के साथ उनके दो शिष्य रहते थे। संत ने दोनों शिष्यों को अच्छी शिक्षा दी थी। एक दिन संत ने दोनों शिष्यों को एक-एक डिब्बे में गेहूँ भरकर दिए और कहा कि मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूँ। दो वर्ष पश्चात वापस आऊँगा, तब ये मुझे लौटा देना, किंतु ध्यान रखना ये गेहूँ नष्ट नहीं होना चाहिए। ये बोलकर संत चले गए। एक शिष्य ने वह डिब्बा घर में पूजा वाले स्थान पर रख दिया और रोज उसकी पूजा करने लगा। दूसरे शिष्य ने डिब्बे से गेहूँ निकाले और अपने खेत में उगा दिए। दो वर्ष में थोड़े गेहूँ से उसके पास बहुत सारे गेहूँ हो गए थे। समय पूरा होने पर संत आश्रम आए और उन्होंने शिष्यों से गेहूँ के डिब्बे मँगवाये। पहले शिष्य ने डिब्बा देते हुए कहा कि गुरुजी मैंने आपके गेहुँओं को बहुत सावधानी से रखा है। मैं प्रतिदिन इसकी पूजा करता था। गुरु ने डिब्बा खोल के देखा तो गेहूँ खराब हो चुके थे। उसमें कीड़े लग गए थे। ये देखकर पहला शिष्य लज्जित हो गया। दूसरा शिष्य एक थैला लेकर आया और संत के सामने रखकर बोला कि गुरुजी ये रही आपकी धरोहर। गेहूँ से भरा थैला देखकर संत बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि पुत्र तुम मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए हो। मैंने तुम्हें जो भी ज्ञान दिया है, तुमने उसे अपने जीवन में उतार लिया है और मेरे दिए ज्ञान का सही उपयोग किया है। इसी कारण से तुम्हें गेहूँ को संभालने में सफलता मिल गई है। जब तक हम अपने ज्ञान को डिब्बे में बंद गेहूँ के समान रखेंगे तब तक उससे कोई लाभ नहीं मिलेगा। ज्ञान को अपने आचरण में उतारना चाहिए। दूसरों के साथ बाँटना चाहिए, तभी ज्ञान निरंतर बढ़ता है और उसका लाभ मिलता है। इस कथा की सीख यही है कि हमें अपने ज्ञान को डिब्बे में बंद करके नहीं रखना चाहिए, इसे बढ़ाने का प्रयास करते रहना चाहिए। ज्ञान का निर्माण शिक्षार्थी के आत्म-नियमन और आत्म-जागरूकता के विकास से होता है। इस प्रकार, हम मात्र प्रासंगिक कौशल और जानकारी सीखने में शिक्षार्थियों का समर्थन नहीं कर सकते हैं, हमें ऐसे उपकरण और संदर्भ भी प्रदान करने चाहिए जिसमें वे अपने स्वयं के सीखने का प्रबंधन करने की अपनी क्षमता विकसित करें। जब किसी मनुष्य के मस्तिष्क में उसके इच्छा के अनुसार विचार उत्पन्न होने लगे, उसकी इच्छा के अनुसार विचार लुप्त होने लगे, उसकी इच्छा के अनुसार उसका मस्तिष्क कार्य करने लगे वह अमूर्त चिंतन में कार्य करना सीख जाए। उसे कल्पना, संकल्प, प्रण-प्रतिज्ञा आदि विचार अवस्थाओं का सम्यक बोध हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि उसे ज्ञान प्राप्त हो गया है। हम विभिन्न प्रकार की पठन, लेखन और आलोचनात्मक चिंतन गतिविधियों के माध्यम से ज्ञान का निर्माण कर सकते हैं, जो उन्हें पूर्व ज्ञान को सक्रिय करने, प्रश्न पूछने, समस्या समाधान करने, अपने विचारों पर चर्चा करने और दूसरों के साथ सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है। अनुभूति ज्ञान का एक स्रोत है क्योंकि यह हमें इस प्रकार के अवधारणात्मक तथ्य उपलब्ध कराता है। अनुभूति संभवत: ज्ञान का एक मूल स्रोत भी है क्योंकि यह अन्य स्रोतों पर स्वतंत्र रूप से कार्य करती है। सच्चा ज्ञान आधारभूत ज्ञान होता है जो हमें आगे बढ़ने के लिए सहायता करता है। यह हमारे अभिज्ञान, अनुभव, शिक्षा और संशोधन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। सच्चा ज्ञान हमें सत्य के प्रति आकर्षित करता है और हमें वास्तविकता का पता लगाने में सहायता करता है। यह ज्ञान होना कि जो अब तक सीखा-सिखाया गया है, अनुभव किया गया है, भोगा-चखा गया है, वह किसी भी प्रकार से अंतिम न है, न हो सकता है। उसमें परिवर्तन और सुधार होगा ही- आज या कल। बस सब कुछ देश, काल, परिस्थिति, हमारी समझ, शक्ति के अनुसार परिवर्तित होता ही रहेगा। 'व्यवहार सदैव ज्ञान पर आधारित होता है क्योंकि जीवन में कई ऐसी स्थितियाँ होती हैं जहाँ ज्ञान व्यवहार को संभाल सकता है।' यह संक्षिप्त कथन ज्ञान के एकाधिकार पर व्यवहार के महत्व को बढ़ाने का प्रयास करता है, जिसका अर्थ है कि यह सदैव सबसे अधिक महत्वपूर्ण नहीं होता है। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी सदैव व्यवहारिक ज्ञान को सर्वोच्च स्थान देते थे वह प्रकृति से उत्पन्न समस्त ज्ञान, वैभव, आनंद को समस्त प्राणियों में समान रूप से वितरित करने हेतु प्रयासरत रहे। इस कड़ी में भावातीत ध्यान-योग को प्रतिपादित कर उसका प्रचार-प्रसार निरंतर करते रहे। विश्व के अनेक राष्ट्रों के करोड़ों व्यक्तियों को इसका अभ्यास करवाकर रसास्वादन भी कराया और आज भी वह सभी साधक भावातीत ध्यान-योग का प्रतिदिन प्रात: एवं संध्या के समय 15 से 20 मिनट का अभ्यास कर अपने ज्ञान को व्यवहार में लाते हुए अपने आस-पास के वातावरण को आनंदित करने का प्रयास निरंतर कर रहे हैं, यही परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी को उनके जन्म दिवस ''ज्ञानयुग दिवस'' पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं। यह ज्ञानयुग दिवस समस्त विश्व में शांति एवं जीवन आनंद को सर्वसुलभ विस्तारित करने का स्वरूप है।


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