Brahmachari Dr. Girish Chandra Varma Ji Blog


आन्तरिक यात्रा का मार्ग

आन्तरिक यात्रा का मार्ग

आन्तरिक यात्रा का मार्ग  15/03/2023 10:02:09 AM   आन्तरिक यात्रा का मार्ग   administrator

एक बार बुद्ध अपने पाँच सौ भिक्षुओं के साथ जंगल में डेरा डाले हुए थे। भिक्षु आपस में चर्चा कर रहे थे कि कौन-सा शहर भिक्षा माँगने के लिए अच्छा है, जहाँ उदार लोग बसते हैं; किन सड़कों पर घनी छाया वाले बड़े पेड़ हैं और किन जगहों पर अच्छी सुविधाएँ हैं? जब बुद्ध ने यह चर्चा सुनी, तो वह थोड़े दु:खी हुए, किंतु उनका दु:ख करुणा से ओत-प्रोत था। उन्होंने सभी भिक्षुओं को प्रवचन के लिए बुलाया। उन्होंने, उन्हें आंतरिक पथ पर ध्यान केंद्रित करने को कहा, न कि बाहरी पथ पर। बुद्ध ने कहा, आंतरिक यात्रा को मजबूत करने के आठ कदम हैं। उनकी दृष्टि में सम्यकत्व का अत्यधिक महत्व है। आप जो कुछ भी करें, दो छोरों के बीच संतुलन बनाएँ; मध्यम मार्ग का अनुसरण करें, क्योंकि यदि आप मध्यमार्ग का अनुसरण करते हैं, तो आप कभी पथभ्रष्ट नहीं होंगे। सुनने में यह आसान लगता है, किंतु बीच में चलना आसान नहीं है। यह तलवार की धार पर चलने जैसा है। निरंतर संतुलन बनाए रखना, मन में उठने वाले तूफानों में न बहना और सजग रहना मध्य मार्ग है। सही दृष्टि, सही निर्णय, सही भाषण, सही कर्म, सही प्रयत्न, सही व्यायाम, सही स्मृति, सही समाधि, ये आठ कदम हैं। सही दृष्टि का अर्थ है पूर्वाग्रही दिमाग या विचारधारा के बिना देखना; जीवन का सीधा सामना करना। यदि आप सही दृष्टि पा लेते हैं, तो आपके पास स्पष्टता होगी और यह स्वाभाविक रूप से आपको अगले चरण पर ले जाएगी, जो है, सही निर्णय। उदाहरण के लिए क्या आपने ध्यान करने का फैसला इसलिए किया, क्योंकि आप निराश हैं या आप अपनी असफलताओं से दूर भागना चाहते हैं? अगर ऐसा है, तो आप इस मार्ग पर अधिक समय तक टिके नहीं रह पाएँगे। आपका मस्तिष्क आपके पिछले जीवन में वापस आ जाएगा। तीसरा है सही भाषण। आप जो कुछ भी कहते हैं, उसके बारे में बहुत सावधान रहें कि इसके पीछे आपके मनतव्य क्या हैं। गौर कीजिए, आप कितनी अनावश्यक बातें करते हैं और कैसे यह आपके लिए परेशानी खड़ी करती है। चौथा है सही कर्म- न तो अति करो और न ही आलसी बनो। पाँचवाँ सही प्रयत्न है। इसका अर्थ है, ठीक उतना ही धन अर्जन करो, जितना जीने के लिए आवश्यक है, न अधिक और न कम। अपने लालच को अपनी आवश्यकताओं से बड़ा न होने दें। छठा सही व्यायाम है। स्मरण रखें, शरीर एक वाहन है, इसे चुस्त और स्वस्थ रखें। सातवाँ है सही स्मृति और आठवाँ सही समाधि। पहली सीढ़ियाँ गिरा दें, जिससे आप आठवें और अंतिम चरण, अर्थात् समाधि, संतुलन को उपलब्ध हों। यहाँ पहँुचने के बाद आप पाएँगे कि आपकी आंतरिक यात्रा पूरी हो गई है। आप स्वयं में वापस आ गए हैं। हम जब तक संसार को अपना सर्वोत्तम देते रहते हैं, हमारा अस्तित्व बना रहता है। परम पूज्य महर्षि जी कहते थे कि देने की यही कला हमें प्रकृति से सीखनी है। हम यदि ध्यान से देखें, तो प्रकृति की कोई भी चीज निरर्थक नहीं दिखाई देगी। कुछ होते रहने का यही भाव प्रकृति के सौंदर्य को अक्षय बनाए रखता है। प्रकृति के विकास की प्रक्रिया सूक्ष्म रूप से चलती रहती है। यही गति तत्व मनुष्य के शरीर और मन को सक्रिय रखता है। इसलिए जीर्ण होना भी एक स्वाभाविक नियम और हमारी नियति है। जो फूल या पत्ते झड़ रहे हैं, वे कल फिर आएँगे, यह आशावाद प्रकृति का अनमोल सिद्धांत है। यह आशावाद हमारी बड़ी खोज है। अरस्तु आदि पाश्चात्य विचारक जहाँ त्रासदी को महत्व देते हैं, तो वहीं भारत ने सिखाया है कि आज दु:ख है तो क्या हुआ, कल अवश्य सुख प्राप्त होगा। यही आशावाद हमें आनंद की ओर ले जाता है। आप संसार में समृद्धतम लोगों से मिलिए या विभिन्न क्षेत्रों के सफल व्यक्तियों से बातें कीजिए, उनमें असंतोष का एक भाव दबा-छिपा मिलेगा। प्राय: लोगों की यही शिकायत होती है कि वे जो चाहते थे, वह न बन सके, न पा सके। बड़े-बड़े लेखक प्राय: यह कहते पाए गए हैं कि मैं अपनी श्रेष्ठ पुस्तक अभी तक लिख नहीं सका। यही उत्तेजना, यही आवेश किसी बड़ी रचना के प्रेरक बिंदु हैं। सच्चाई यही है कि कोई भी घटना कहीं समाप्त नहीं होती, बल्कि वह किसी दूसरी घटना को जन्म देती है। मनुष्य जीवन को इन्हीं विपरीत परिस्थितियों में जीना पड़ता है। प्राय: लोग यह कहते हुए मिलते हैं कि हमें सदैव संघर्ष की मुद्रा में रहना है, नदी की विपरीत धारा में अपनी भुजाओं के बल से तैरना है, मगर हरदम की लड़ाई-भिड़ाई हमें विचलित करती रहती है। याद रखें, मिट्टी में दबे बीज को जब तक हिलाया-डुलाया जाता रहेगा, उसके वृक्ष बनने की संभावना कम रहेगी। एक शांत और गहन मौन ही जीवन को रूपाकार प्रदान कर सकता है। समुचित विकास के लिए उचित धैर्य, शांति और मौन का समाधि-भाव तथा प्रतीक्षा चाहिए, तभी पूर्णता की प्राप्ति संभव है। परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी सदैव कहते थे कि सही दृष्टि का अर्थ है पूर्वाग्रही दिमाग या विचारधारा के बिना देखना; यदि आप सही दृष्टि पा लेते हैं, तो आपके पास स्पष्टता होगी और यह आपको अगले चरण पर ले जाएगी, जो है, सही निर्णय।


0 Comments

Leave a Comment