व्यवहार में ज्ञान समावेश अति आवश्यक
09/12/2024 12:43:45 PM administrator
एक बार महर्षि नारद ज्ञान का प्रचार करते हुए किसी सघन वन में पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक घनी छाया वाला सेमल का पेड़ देखा। नारदजी को उस पेड़ के वैभव ने प्रभावित किया। उन्होंने पूछा, 'वृक्ष राज तुम्हारा आकर्षक वैभव कैसे बना हुआ है? पवन तुम्हें गिराती क्यों नहीं? 'वृक्ष ने हर्षित हुए कहा, 'प्रभु, पवन का सामर्थ्य नहीं कि वह मुझे गिरा सके।'नारदजी को लगा कि सेमल, घमंड में ऐसा कह रहा है। वह पवन के पास गए और कहा, 'अमुक वृक्ष घमंड में है, आपकी निंदा करता है। उसका घमंड दूर करना चाहिए।'पवन को क्रोध आया। वह उस वृक्ष को उखाड़ फेंकने के लिए बड़े प्रबल प्रवाह के साथ चल दिए। सेमल वृक्ष ज्ञानी था, उसने भावी संकट को समझा। अपने सारे पत्ते झाड़ कर ठूँठ के समान खड़ा हो गया। पवन आया उसने बहुत प्रयत्न किया पर पेड़ का कुछ न बिगड़ा। कुछ समय बाद नारदजी को आश्चर्य हुआ कि वृक्ष ज्यों का त्यों हरा-भरा खड़ा है। उन्होंने सेमल से पूछा, 'पवन की शक्ति के सामने कैसे स्थिर हो, इसका क्या रहस्य है? 'वृक्ष ने नम्रतापूर्वक कहा, 'मेरे पास वैभव है, पर मैं इसके मोह में बँधा नहीं हूँ। यात्रियों को छाया देता हूँ, पर जब आवश्यक समझता हूँ, इस सारे वैभव को बिना किसी हिचकिचाहट के त्याग देता हूँ और ठूँठ बन जाता हूँ। उसी निर्लिप्त कर्मयोग के कारण मैं पवन के प्रचंड प्रहार को सहता हुआ भी स्थिर हूँ। वैभव रखना, कोई बुरी बात नहीं है। बुराई उससे मोह करने में है।'अत: जब हम निरंतर कुछ नवीन करने का प्रयास करते हैं, अपने अस्तित्व से बाहर निकलएक नए दृष्टिकोण से स्वयं को देखते हैं, अपने संबंधों को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करते हैं या कोई अनुचित व्यवहार छोड़ते हैं, तब हम अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाकर एक नवीन रूप में स्वयं को देखने लगते हैं। आत्मविकास के लिए स्वयं के आत्मविश्लेषण में सत्य के आधार पर दृष्टिकोण को परिवर्तित करें और सोच को बड़ा बनाने की आवश्यकता प्रयास करें है। उदाहरण के लिए जब आप अधिक सचेत, जागरूक हैं, अपने कार्य को लेकर अनुशासित रहते हुए स्वयं तथा दूसरों के प्रति सहानुभूति का भाव रखने लगते हैं, तो वास्तव में यह आपका एक नवीन रूप होता है।
यह आपके पुराने स्वयं को विस्तार देकर एक नवीन स्वयं को देखने का माध्यम बन जाता है। किंतु दुर्भाग्यवश हमारी पुरानी धारणा हमें निरंतर उसी रूढ़िग्रस्त मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। अपने जीवन में बिना मंथन किए कुछ भी करने का आपका प्राचीन व्यवहार आपको निरंतर उसी मार्ग पर पुन: खींचने का प्रयास करता है। आपकी पुरानी जीवनशैली उन्हीं बँधनों में आपको बाँधकर रखना चाहती है। इसलिए किसी भी परिवर्तन से भयभीत करती है। यह भय आपको जीवन में संतुलन स्थापित करने से रोकता है। आपका कार्य टालने का व्यवहार आपको अनुशासन और नियम से चलने नहीं देता है। परिणामस्वरूप आप हर उस कार्य से बचना चाहते हैं जो कठिन है। कुछ नया करें आपका पुराना सुखदायक क्षेत्र (Comfortbale Zone) स्वयं किसी भी नई स्थिति को लेकर आपको हतोत्साहित करता है और ऐसी दृष्टि उत्पन्न करने लगता है, जिससे कुछ भी नया करने में आपको असहजता अनुभव हो और आश्चर्य लगे। आपका पुराना स्वयं बार-बार आपको समझाएगा कि मात्र एक और बार कुछ गलत कर लेने से कोई हानि नहीं होगा। आपको उस व्यवहार में लिप्त रखने के लिए वह यह भी कहेगा कि उस व्यवहार को छोड़ने के लिए आपको विचलित होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आपके लिए वही सही है। अनेक प्रकार से हमारा पुराना व्यवहार और पहचान हमें आगे बढ़ने से रोकती है। पर इनसे आगे कैसे निकला जा सकता है? कल्पना करें कि आप अपनी पूर्ण अभिसा (पहचान) तक सीमित नहीं हैं। अब सोचिए कि ऐसा न होने पर आप क्या बनना चाहते हैं? आप ऐसा कौन-सा कार्य करना चाहते हैं, जो वैसे असंभव लगता है? यह कोई छोटा-सा कार्य भी हो सकता है (मैं सुबह थोड़ा शीघ्र उठना चाहता हूँ) या यह कोई बहुत बड़ा परिवर्तन भी हो सकता है (मैं अपने रचनात्मक कार्य को साहस के साथ विश्व के सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ)। जब भी आप अपने पुराने मार्ग से बाहर निकलने का प्रयास करेंगे, आपका पूर्ण आचरण आपको पीछे खींचने का प्रत्येक संभव प्रयत्न करेगी। यदि आप सार्वजनिक सभा में बोलना चाहते हैं, तो आपका मस्तिष्क ऐसा न करने के ढेरों कारण आपके सामने रखने लगेगा। वास्तव में यह कुछ नया करने का भय है, जो प्रतिरोध, भय और अत्यधिक भार की ऐसी अनुभूति, जो शरीर में अनुभव होती है, पर यह विचारों की कड़ी भी है, जो कहती है कि (इस कार्य को एक बार छोड़ देने में कोई बाधा नहीं है) या (ऐसे कार्यों से स्वयं को विचलित करने के संकोच से जीवन बहुत छोटा है)। किंतु आप मात्र इन समस्त विचारों के प्रति जिज्ञासा जगाते हुए इन्हें अनुभव करें। यदि आपकी पूर्व पहचान पर ही आपका अन्तर्मन, अंतर्मुखी होना है, पर अब आप अपरिचित लोगों से मुखर होकर बात करते हैं, तो आपका पूर्व स्वयं इसके सामने टिक नहीं पाएगा। इसलिए समय-समय पर कुछ नवीन करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाएँ।
कुछ अलग अनुभव करना अच्छा है और इससे सोच को विस्तार मिलता है। संभव है प्रारंभ में आपकी पुरानी सोच आपको पुन: उसी मार्ग पर खींचने का प्रयास करे, किंतु आप फिर भी आगे बढ़ने का प्रयास करें। ऐसा करते समय अपने अंतर्मन को खोलने का भी प्रयास करें। जैसे हो सकता है आप काम करते समय अधिक आनंद का अनुभव करना चाहते हों, तो उस आनंद का अभ्यास करें। जब आप इन सभी बातों पर ध्यान देना प्रारंभ कर देंगे तो समझ आने लगेगा कि यह मात्र भय का आपके ऊपर हावी होने के प्रयास है। आप मात्र अपने भय से थोड़ी सहानुभूति रखें और गहरी श्वॉस लें। अपनी सोच और अपने विचारों को समझें और स्वयं से प्रेमपूर्वक व्यवहार करें। नियमित रूप से प्रात: एवं संध्या को 15 से 20 मिनट का भावातीत ध्यान-योग का प्रतिदिन अभ्यास करें। आप पाएँगे कि छोटा सा प्रयास आपके दृष्टिकोण को बदल देगा जो आपके आनंद के मार्ग को प्रशस्त करे
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