कथा, कहानी और हम
08/04/2023 03:53:10 PM administrator
'कथा' और 'कहानी' की प्रकृति समान होते हुए भी दोनों में बहुत अंतर है, क्योंकि जहाँ 'कथा' पौराणिक घटनाओं और धार्मिक महत्व की शिक्षा प्रदान करती है, वहीं कहानी काल्पनिक तथ्यों और कल्पना के आधार पर संदेश प्रदान करती है। हमारे जीवन में कथा का बहुत महत्व है। जब हम किसी के बारे में सुनते हैं जिसे हमने कभी नहीं देखा तो बार-बार उसके बारे में सुनते रहने से स्वत: ही हमारे अंदर उसके लिए प्रेम जागृत हो जाता है। इसी प्रकार जब हम बार-बार सुनते हैं तो ईश्वर में हमारी स्वत: ही भक्ति जागृत हो जाती है। जो हम कानों से सुनते हैं वही हमारे हृदय में प्रवेश करता है और फिर वही हम बोलते हैं। यदि हम कथा सुनते हैं तो मुख से कथा ही निकलेगी। 'जिन्ह हरि कथा सुनी नहीं काना, श्रवण रन्ध्र अहि भवन समाना'- यदि कथा ईमानदारी से कही और सुनी जाए तो कहने और सुनने वाले दोनों को पाने की अभिलाषा नहीं रह जाती। इसलिए कथा सुनने से पहले यह निश्चय करें कि कथा एक मार्ग है, जिसमें हम स्वयं को देखने आये हैं, सामान्य आईना मात्र बाहरी रूप-रंग दिखाता है और कथा आंतरिक भावों को दिखाती है कि हम वास्तव में क्या हैं? और सुनाने वाले अर्थात वक्ता कथा को व्यापार या रोजी रोटी का साधन न समझें, सुनने वाला तो एक ही कार्य कर रहा है मात्र सुन ही रहा है, पर वक्ता दो कार्य कर रहा है एक तो सुना रहा है साथ-साथ सुन भी रहा है। जब ऐसी ईमानदारी रखेंगे तो फिर तृष्णा रहित वृत्ति हो जाती है- सत्संग कथा झाड़ू है जैसे खुला मैदान है दो तीन बार झाड़ू लगा दो सब साफ हो जाता है, इसलिए अपने अत: करण में सत्संग की झाड़ू लगाते रहो, जैसे यदि हम कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर जाते हैं और लौटकर आने पर हम देखते हैं कि जब हम गए थे तब सब खिड़की दरवाजे बंद करके गए थे फिर भी धूल कैसे आ गई। इसी प्रकार यदि कोई संत ही क्यों न हो यदि उसने सत्संग के दरवाजे बंद कर दिए तो उनके अंदर भी मैल, धूल जमा हो जाती है। इसलिए जैसे घर को स्वच्छ रखने के लिए बार-बार झाड़ू लगाते हैं वैसे ही अंत: करण को शुद्ध रखने के लिए कथा रूपी, सत्संग रूपी झाड़ू लगाते रहिए। भागवत की कथा अर्थात् भगवान की कथा तो है ही पर भगवान की कथा बिना भक्तों की कथा के अधूरी है। इसलिए हर शास्त्र में पुराण में भगवान की कथा के साथ-साथ भक्तों की कथा भी आती है। जीवन सतत् अनुभवों की कथा है, जिसे लिखने वाला कोई और है। पढ़ने, सुनाने, दुहराने वाला कोई और। समय के कागज पर मान-अपमान, यश-अपयश, आरोप-प्रत्यारोप से भरा जीवन भी एक कथा है। यह कहानी भविष्य में अतीत की धरोहर बनती है। किसी के जीवन में घटी समस्त घटनाओं का विवरण ही जीवन की कथा है। अनेक लोग कहते हैं जीवन एक रंगमंच है और सम्पूर्ण जीवन में अनेक प्रकार के पात्र के रूप में हमें अनेक किरदार निभाने होते हैं और एक अच्छा और मँझा हुआ कलाकार ही विभिन्न पात्रों को एक ही मंच पर निभा सकता है। स्क्रिप्ट भी पता नहीं होती और यह भी मालूम नहीं होता कि कितने समय पर प्रारंभ होगा। कब मध्यान्ह होगा और कब समाप्त होगा। जीवन के मंच पर हमें धैर्य रखकर अन्य पात्रों के साथ संवाद करने होते हैं। ऐसे समय में एकांत के समय में किया गया अध्ययन, अध्यापन व उसका 'विश्लेषण' ही आपकी सफलता का आधार होगा। हमारे बड़े-बूढ़ों एवं परिवार की छाँह में प्राप्त अनुभव की अनगिनत कथा, कहानियों का विश्लेषण ही आपके जीवन के लिए जीवन मंत्र का कार्य करेगी। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के अनन्य भक्त ने एक बार उन्हें बड़ा बहुमूल्य दुशाला लाकर दिया। उसे ओढ़कर परमहंस देवी के ध्यान में बैठ गये। ध्यान पूरा होने के बाद जब वे भगवती को दंडवत प्रणाम करने लगे तो, प्रणाम करते समय उनके मन में क्षणभर को यह विचार उठा कि कहीं मूल्यवान कपड़े में धूल न लग जाए। बाद में आत्म-निरीक्षण के समय उन्हें इस विचार का स्मरण आया, तो उन्होंने निश्चय किया कि ध्यान में बाधक इस मूल्यवान वस्तु को त्याग देना चाहिए। उन्हें नहीं पहनना चाहिए और उन्होंने दुशाला वापस कर दिया। सुख के लालच से ही नए दु:खों का जन्म होता है। व्यक्तिगत अनुभवों व रुचियों के आधार पर ही हमारे जीवन की कहानी आगे बढ़ती है। यदि आप एक पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक आदर्शों को धारण करते हुए चलते हैं, तो आप नायक होंगे और यदि आप पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक संस्कारों को अनदेखा करेंगे तो आप खलनायक। आपके द्वारा निभाये जाने वाले प्रत्येक चरित्र का 'चरित्र' मन, कर्म व वचन में संतुलन व तारतम्य में होना चाहिये तभी हमारे जीवन को देखने वाले दर्शक व हमारे जीवन को पढ़ने वाले परिचित हमें नायक या खलनायक सिद्ध करेंगे। परमपूज्य महर्षि महेशयोगी जी सदैव कहा करते थे कि 'जीवन आनंद है।' अत: हमें सदैव स्वयं भी आनंदित व सुखमय कार्यों को करते हुए अपने जीवन की कहानी लिखनी है। इसमें कोई भी शार्टकट नहीं है और यह एक चरणबद्ध सतत् प्रक्रिया है। इसमें साहस, समर्पण, प्रेरणा, लगन एवं दृढ़ निश्चय ही लक्ष्य तक पहुँचने के साधन हैं।
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