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परिवर्तन के साथ संतुलन

परिवर्तन के साथ संतुलन

परिवर्तन के साथ संतुलन  08/12/2021 11:30:17 AM   परिवर्तन के साथ संतुलन   administrator

एक भिक्षु एकान्त में ध्यान करना चाहते थे। वह शोर से दूर ध्यान करने के लिए नदी की ओर चले गए। वे एक नाव पर सवार हुए और नदी के बीच में आ गए। नदी शांत ही थी, उन्होंने वहाँ नाव रोक ली और ध्यान करने लगे। सब सही चल रहा था। तभी उन्हें हलचल अनुभव हुई। लगा कि कोई उनकी नाव को हिला रहा है, उस पर बार-बार टक्कर मार रहा है। उनका ध्यान टूटने लगा। वे आँखें खोलकर एक दूसरे पर क्रोधित होने ही वाले थे देखा कि सामने वाली नाव खाली है। सामने कोई होता तो क्रोध करते, पर अब क्या करें? तभी भिक्षु को अनुभव हुआ कि क्रोध, भय, बेचैनी उनके अपने भीतर हैं, क्योंकि दूसरी नाव तो खाली है। उन्होंने स्वयं को ठीक किया और वापस ध्यान में बैठ गए। अत: जब हर पल योजनाओं में परिवर्तन हो रहा हो, तो क्रोध आना स्वभाविक है। हमें चिंता भी होने लगती है, पर यही समय होता है, जब हमें परिवर्तन के साथ संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिए। आवश्यकता झुंझलाने और जूझने के स्थान पर स्वयं को परिवर्तनों से जोड़ने और बहाव के साथ बहते रहने की होती है। वैदिक दृष्टिकोण हमें भय पर नियंत्रण पाने के लिए गहन अंतर्दृष्टि देता है। यह भय को गहरे रोग का लक्षण मात्र मानता है, मन की आसक्ति और आसक्ति के विषय से संभावित हानि से भय होने के अनेक कारण है। उदाहरण के लिए संपत्ति से आसक्ति या लगाव से निर्धनता का भय उत्पन्न होता है, सामाजिक प्रतिष्ठा से आसक्ति के कारण अपयश का भय उत्पन्न होता है आदि। इसी प्रकार समृद्धि, आराम और अपनी स्वयं के जीवन से आसक्ति के कारण प्राकृतिक आपदाओं का भय उत्पन्न होता है। हम जानते हैं कि जीवन नश्वर है, फिर भी भयभीत रहते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि आत्मा अमर है। ऐसे ज्ञान पर चिंतन हमें मृत्यु के भय से ऊपर उठने में सहायता करता है। जब हम मानसिक रूप से अपने सुरक्षित क्षेत्र से आसक्त रहते हैं, तो अपनी परिस्थितियों एवं हमारे जीवन से जुड़ी योजनाओं के मन अनुसार परिणाम चाहते हैं, तो भय इसका स्वाभाविक परिणाम होता है। इनसे ऊपर उठने का एकमात्र उपाय है कि हम सर्वश्रेष्ठ करने पर ध्यान केंद्रित करें और किसी भी परिणाम को ईश्वर की इच्छा के रूप में स्वीकार करें। जब हम हृदय से स्वीकारेंगे कि भगवान जो कुछ भी तय करते हैं, वह हमारे जीवन के लिए सबसे अच्छा है, तब हम नदी के समान बहना सीखेंगे तो परिणामों से आसक्ति समाप्त होगी। महाभारत युद्ध के समय, जब भीष्म पितामह ने अर्जुन को मारने का संकल्प लिया था, तो भगवान कृष्ण व पांडव वंश के सभी लोग चिंतित हो गए थे। आधी रात में जब वे सभी अर्जुन को सांत्वना देने गए, तो अर्जुन खर्राटे ले रहे थे। जागने पर अर्जुन ने सभी को समझाया कि जब भगवान स्वयं उनकी सुरक्षा के लिए इतने चिंतित हैं, तो उन्हें भयभीत होने का कोई कारण नहीं दिखाई देता। भय पर विजय पाने का सबसे सरल और शक्तिशाली साधन पूर्र्ण विश्वास है। वह यह कि ईश्वर और गुरु हमारे साक्षी और रक्षक हैं। जैसे-जैसे हम सर्वशक्तिमान के प्रति समर्पित होते जाते हैं, हमारे समस्त भय लुप्त हो जाते हैं। हमारा मात्र एक ही मन है। भय पर चिंतन के स्थान पर परमात्मा का चिंतन करें। अकेलापन, साथियों के दबाव, आर्थिक असुरक्षा आदि से संबंधित आशंकायें हमें मानसिक रूप से कमजोर करती हैं, जबकि ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करने से हमारा उत्थान होता है। ईश्वर, दिव्य नामों, रूपों, गुणों, लीलाओं, निवासों या संतों का ध्यान करके अपने आपको भय से दूर होने के लिए प्रेरित करें। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी कहते थे कि जीवन आनन्द है। किंतु वर्तमान परिस्थितियों में मानव प्रकृतिमय न होकर भौतिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति रखता है, वह यह नहीं देखता कि जो उसको ईश्वर कृपा से प्राप्त है, वही पर्याप्त है और उसमें आनन्दित रहने केस्थान पर जो उसके पास नहीं है उसकी चिन्ता करने लगता है।


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