महाकुम्भ अध्यात्म, ज्ञान और साधना की त्रिवेणी-ब्रह्मचारी गिरीश जी
13/02/2025 03:12:39 PM
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वेद विद्या मार्तण्ड ब्रम्हचारी गिरीश जी ने तीर्थराज प्रयाग में आयोजित महाकुंभ को भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं में आस्था तथा देवी देवताओं के प्रति भक्ति का सबसे बड़ा उत्सव निरूपित किया है। प्रयाग राज में महाकुंभ का आयोजन भारत की सनातन वैदिक परंपराओं के प्रति असंख्य तीर्थ यात्रियों की सामूहिक आस्था के व्यक्तीकरण का एक पवित्र अवसर है जिसमें श्रद्धालु पावन गंगा, यमुना एवं सरस्वती नदियों के पवित्र संगम पर स्नान कर अपने जीवन को धन्य बनाने के लिए एकत्रित होते हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक एवं आध्यात्मिक समागम है।
शास्त्रों के अनुसार महाकुम्भ अपनी बुराइयां छोड़कर एवं अच्छाइयां लेकर जाने का शुभ अवसर है। वैमनस्यता, लालच, ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट, दुराभाव, माया, मोह, लोभ जैसे अनेक नकारात्मकता पक्ष तो पहले किसी आदर्श मनुष्य में होने ही नहीं चाहिए, उसका जीवन पथ तो मित्रता, स्नेह, संवेदनशीलता, दानशीलता, सरलता, सहजता, क्षमाशीलता जैसे सकारात्मकता पक्षों से परिपूर्ण होना चाहिए। यदि फिर भी कोई बुराई हो तो उसे यही छोड़कर और समस्त अच्छाइयों को लेकर जाने का अवसर प्रदान करता है महाकुंभ। पूर्ण विश्वास है कि प्रयागराज आने वाले सभी तीर्थयात्री जन इसी ज्ञान को धारण कर रहे होंगे।
यहां यह विचारणीय है कि जो ज्ञान हम सब को प्राप्त हो रहा है, पवित्र संगम में डुबकी लगाने के बाद जो सद्भावना जागृत हो रही है, वह कितनी स्थाई है, क्या यह जीवनभर हमारे साथ रहेगी, क्या कोई ऐसी विधि है जो इस भावना को स्थायित्व प्रदान कर सके। श्रीमद् भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है "योगस्थ:कुरुकर्माणि" अर्थात योग में स्थित होकर कर्म करो।
वर्तमान में जनसामान्य योगासनों को ही योग समझ रहे हैं, तब सामान्य व्यक्ति के लिए यह समझना कठिन है कि योगासन करते हुए कर्म कैसे करें। इस संदर्भ में भारत के महान सपूत एवं विश्व के महानतम चेतना वैज्ञानिक परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी ने विश्व को भावातीत ध्यान के रूप में वैदिक ज्ञान के व्यवहारिक पक्ष की सरल, सहज, प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक पद्धति प्रदान की है जिसके प्रतिदिन प्रातः संध्या मात्र बीस मिनट के अभ्यास से अभ्यासकर्ता को भावातीत चेतना का अनुभव होने लगता
है I इससे अभ्यासकर्ता को अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं, जिससे सकारात्मकता, एकाग्रता, निश्चयात्मकता में वृद्धि एवं अजेयता की प्राप्ति सम्मिलित हैंI भावातीत ध्यान की निरन्तर साधना से निश्चयात्मकता के गुण में हुई वृद्धि ही इस महाकुंभ में प्राप्त ज्ञान एवं भावना को स्थायित्व देने में अत्यंत सहायक होगी। यही सच्चा आनन्द है I परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी ने सदैव वेदों से प्राप्त व्यावहारिक ज्ञान भावातीत ध्यान को सर्वोच्च स्थान दिया। अब हम सभी को भी प्रकृति से उत्पन्न इस समस्त ज्ञान एवं इस ज्ञान से प्राप्त वैभव व आनन्द को समस्त प्राणियों में समान रूप से वितरित करते हुए अध्यात्म, ज्ञान एवं साधना की इस त्रिवेणी में डुबकी लगाते रहना है I तभी इस महाकुंभ की सार्थकता पूर्णता को प्राप्त होगी और जीवन धन्य होगा ।
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