पंचतत्व और शरीर
04/02/2021 05:07:12 PM administrator
।। शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।। -उपनिषद्
अर्थ : शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। अर्थात्
शरीर को स्वस्थ बनाए रखना आवश्यक है। इसी के होने से सभी का होना है अत:
शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है। पहला
सुख निरोगी काया। मानव शरीर पांच तत्वों से बना होता है, मिट्टी, पानी,
अग्नि, वायु और आकाश। इन्हें पंच महाभूत या पांच महान तत्व कहते हैं। ये
सभी सात प्रमुख चक्रों में विभाजित हैं। जब तक सातों चक्रों और पांच तत्वों में
संतुलन रहता है, तभी तक हमारा शरीर और मस्तिष्क स्वस्थ रहता है।
पर्यावरण से बढ़ती दूरी स्वास्थ्य के लिए अनेक प्रकार की चुनौतियां उत्पन्न कर
रही हैं। कोविड-19 महामारी को गंभीर बनाने में शहरीकरण, अधिक जनसंख्या
और अस्वस्थ जीवनशैली का भी कम दोष नहीं है। प्रकृति से जुड़ना आज समय
की आवश्यकता बन चुका है। हमारी दिनचर्या की प्रकृति से बढ़ती दूरी हमें रोगी
बना रही है।
शहरीकरण, अधिक जनसंख्या, अनियमित जीवनशैली, तनाव और
असन्तुलित भोजन हमें जीवनशैली से जुड़े रोगों की ओर ले जा रहे हैं। कोविड-19
ने भी प्रकृति से जुड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया है। कैसेभी हमारा ध्यान
किसी रोग विशेष से ही नहीं, पूरे शरीर को सुरक्षित व स्वस्थ रखने पर होना
चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार, तन, मन, आत्मा और प्रकृति का उत्तम सामांजस्य
ही स्वस्थ जीवन का आधार है। प्राकृतिक जीवनशैली समग्र रूप से स्वस्थ रहने
और रोग प्रतिरोधक क्षमता को दृढ़ बनाने के लिए निर्णायक है। हम मिट्टी से दूर
हो रहे हैं। यहां तक कि बच्चों को भी बाहर खेलने नहीं देते, जिससे उन्हें धूल-मिट्टी से बचा सकें। पर सत्य यह है कि मिट्टी हमें रोगी नहीं बनाती, अपितु रोगों से दूर रखने में सहायता करती है। प्रदूषण रहित मिट्टी में कुछ बैक्टीरिया
माइक्रोबैक्टीरिया और लैक्टोबेसिलस बुलगारिकस आदि होते हैं, जो हमारे
प्रतिरक्षा तंत्र, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और व्यवहार पर सकारात्मक प्रभाव
डालते हैं। जल हमारे शरीर का प्रमुख रासयनिक तत्व है। शरीर में जल का
सामान्य स्तर होना बहुत आवश्यक है। पानी की आवश्यकता आयु, स्वास्थ्य
और भार पर भी निर्भर करती है। हमारे शरीर को अपने कार्यों को पूरा करने के
लिए ऊष्मा की आवश्यकता होती है।
सूर्य, ऊष्मा का सबसे बड़ा स्रोत है। जो हमारे
स्लीप पैटर्न को नियंत्रित करता है, उस पर सूर्य के प्रकाश का सीधा प्रभाव होता
है। नियमित आधे घंटे की गुनगुनी धूप सेंकना हमारे हृदय, रक्तदाब,
मांसपेशियों की शक्ति, रोग प्रतिरोधक तंत्र की कार्य प्रणाली और कोलेस्ट्रॉल के
स्तर को सामान्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके
अतिरिक्त हम संतुलित भोजन से भी शरीर को ऊष्मा प्रदान करते हैं। ठंड के
दिनों में शरीर में ऊष्मा का सामान्य स्तर बनाए रखने के लिए अदरक, लहसुन,
काली मिर्च, हल्दी, हरी मिर्च आदि मसालों, सूप, सूखे मेवे आदि का सेवन करना
अच्छा रहता है। हमारा शरीर कोशिकाओं से बना होता है और हवा
(ऑक्सीजन ) के बिना कोशिकाएं मृत होने लगती है। शरीर सुचारु रूप से कार्य
कर सके, इसके लिए आवश्यक है कि हमारा श्वसन तंत्र ठीक प्रकार से कार्य करें।
ऑक्सीजन के बिना भोजन का ऑक्सीडेशन भी नहीं हो पाता है। ऐसे में
नियमित शुद्ध और खुली हवा में श्वॉस लें। प्रकृति के बीच कुछ समय बिताएं।
खुले वातावरण में गहरी श्वॉस लें, व्यायाम करें, जिससे फेफड़ों तक अधिक मात्रा
में वायु पहुंच सके। हमारा मन कुछ समय के लिए भी रिक्त नहीं रहता। यह रोग बढ़ने का बड़ा कारण है।
हमें जीवन में कुछ समय ऐसा निकालना होगा, जब हम अपने तन व मन को शान्ति दे सकें। स्वस्थ रहने के लिए चिंता और तनाव से
मुक्ति अत्यंत आवश्यक है। अत: प्रतिदिन प्रात: व संध्या को नियमित रूप से
10 से 15 मिनट के भावातीत ध्यान-योग शैली का अभ्यास आपके तन व मन कि
आशुद्धियों को दूर करने को प्रेरित और प्रोत्साहित करेगा एवं मन व मस्तिष्क
के आपसी सामंजस्य को दृढ़ता प्रदान करेगा और हम सभी आनन्दित जीवन का
आनन्द ले सकेंगें।
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