जीवन सामान्य, व्यक्तित्व महान
13/04/2022 10:53:07 AM administrator
एक बार एक राजा ने अपने मंत्री को किसी साहसिक परीक्षण के लिए एक साहसी सैनिक ढूंढने के लिए कहा। मंत्री चार सैनिकों को लेकर आया। राजा ने परखने के लिए परीक्षा का आयोजन किया। राजा, चारों सैनिकों को एक बड़े खेत में लेकर गया। खेत के दूसरी ओर एक बाड़ा बना हुआ था। राजा ने कहा- आप सभी को एक अवसर मिलेगा। आपको बाड़े में जाकर देखना है कि वहाँ भीतर क्या है? पहला सैनिक बाड़े की ओर चला। अचानक से गर्जना होने लगी। भूमि हिलने लगी। सैनिक भयभीत हुआ। आवाजें बढ़ने लगी अीर वह नीचे गिर गया। दूसरे सैनिक ने चलना प्रारंभ किया। तूफान के बीच वह पहले सैनिक तक पहुँच गया, पर वह भी नीचे गिर गया। तीसरे सैनिक ने उत्साह दिखाते हुए चलना प्रारंभ किया। वह उन दोनों को पार कर गया। बाड़े के पास की भूमि बड़ी तेजी से हिलने लगी, बाड़ा भी हिलने लगा। तीसरा सैनिक भी भयभीत होकर वहीं गिर गया। चौथे सैनिक ने धीरे-धीरे चलना प्रारंभ किया। वह स्वयं भयभीत था, पर वह नहीं चाहता था कि दूसरों को उसका भय दिखाई दे। वह पहले सैनिक तक पहुँचा और कहा, 'मैं अभी तक ठीक हूँ।' वह कदम बढ़ाता गया। वह दूसरे सैनिक तक पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर भी उसने कहा, 'मैं अभी तक ठीक हूँ।' तीसरे सैनिक के पास पहुँचते ही बादल तेजी से गरजने लगे। भूमि तेजी से हिलने लगी। वह तीसरे सैनिक के पास पहुँचा और दोहराया, 'मैं अभी तक ठीक हूँ। और आगे बढ़ सकता हूँ।' उसने बाड़े के द्वार पर हाथ रखा। अचानक तूफान रुक गया। भूमि हिलना बंद हो गई। सूर्य चमकने लगा। सैनिक अचंभित हुआ। बाड़े के अंदर से बड़ी तेज आवाज आई, पर उसे लगा यह भी कोई भ्रम ही है। 'मैं अभी तक ठीक हूँ, आगे भी ठीक रहूँगा।' उसने द्वार खोला। वहाँ एक सफेद घोड़ा था। वह घोड़े पर बैठकर राजा के पास आ गया। उसने राजा से कहा, 'महाराज, बताएँ मुझे क्या करना है'' राजा ने पूछा, 'कैसा लग रहा है' सैनिक बोला 'मैं अभी तक ठीक हूँ।' राजा यह सुनकर प्रसन्न हो गया। उपरोक्त कथा हमें यह बतलाती है कि सोचना अच्छी बात होती है, पर अधिक सोचना नहीं। विशेषकर जब चुनौती सामने हो तो हमारा ध्यान सही सोचने पर होना चाहिए। हमारा ध्यान विकल्पों पर होना चाहिए। हम क्या कर सकते हैं, उस पर सोचना चाहिए। सही सोचना, हमारी समस्या को सुलझाता है। वहीं अधिक सोचना हमें उलझा देता है। शोध कहते हैं कि लंबे समय तक ऐसा रहना तनाव और बेचैनी को बढ़ाता है। हम धीरे-धीरे अवसाद की ओर बढ़ने लगते हैं। हमारे लिए चलते रहना आवश्यक है। यह तन-मन के लिए आवश्यक है और जीवन के लिए भी। जीवन में ठहराव का, विश्राम का महत्व है, पर निरंतर अटके रहना गलत है। चलते रहना हमें अनेक अनर्गल बातों से दूर रखता है, अन्यथा यदि हम बैठे रहते हैं और बैठे ही रह जाते हैं। हमारा वैदिक वांङ्गमय ऐसे ही अनेक साहसी महापुरुषों की साहस और पराक्रम की गाथाओं से भरा पड़ा है जिन्होंने स्वयं के हित को न साधकर सामाजिक हितों की रक्षा व परिस्थितियों को व्यवस्थित करने में अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह सभी अपने कर्त्तव्यों के प्रति सजग थे अत: भयहीन थे। स्पष्ट है कि जब हम स्वयं के हितों को सर्वोपरी रखते हैं तो हमारी सोच हमारे व्यक्तित्व को स्वार्थी बनाती है जिससे भय उत्पन्न होता है। राजा कंस और राजा रावण बहुत विद्वान व सर्वशक्तिमान राजा थे किंतु उनके स्वार्थ ने उन्हें अंधा कर दिया था। वह मात्र स्वयं के स्वार्थ सिद्धि में अपयश को प्राप्त करते हुए समाप्त हो गये। उनके जीवन के लक्ष्य अंतहीन थे। अत: वह अपयशी मृत्यु को प्राप्त हुए। जीवन को सामान्य बनाने से ही व्यक्तित्व महान बनता है। राजा राम और द्वारकाधीश कृष्ण इसका उदाहरण हैं। हमें अपने सटीक जीवन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए परम् पूज्य महर्षि महेश योगी जी द्वारा प्रतिपादित भावातीत ध्यान का प्रतिदिन, प्रात: एवं संध्या, 15 से 20 मिनट का अभ्यास करें जो हमें कल्याणकारी लक्ष्य की ओर अग्रसर करेगा। यह तुरंत नहीं होता, परंतु होता अवश्य है। अत: अभ्यास करते रहिये और आनन्दित रहिये।
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