योग आनन्द का आधार- ब्रह्मचारी गिरीश जी
07/06/2024 10:52:18 AM administrator
यह हर्ष का विषय है कि आज सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण करते हुए अपनी शक्ति व सामर्थ्य का आभास कराकर भारतीय योग "योगा" के रूप में घर वापस आ गया है किंतु अभी भी यह अधूरा है क्योंकि योग मात्र शारीरिक व्यायाम नहीं है। इसके अनेक चरण हैं जैसे- यम, नियम, आासन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। जैसा कि स्पष्ट है कि योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना और इस जुड़ने के भी चरण है जैसे- प्रथम योग का क्रम है मन व मस्तिष्क का योग, उसके बाद मन का आत्मा से योग, फिर आत्मा का परमात्मा से 'योग' यही सर्वश्रेष्ठ योग है। 'योग' हमारी वैदिक ज्ञान की उत्पत्ति है अत: यह कहना उचित होगा कि सम्पूर्ण विश्व पुन: अपने कल्याण व जीवन में आनंद की प्राप्ती के लिये हमारी और देख रहा है। पश्चिम समाज कहता है जीवन संघर्ष है एवं इसी वाक्य को जीवन का सत्य मानते हुए पश्चिमी राष्ट्रों ने सम्पूर्ण विश्व में इसका प्रसार कर दिया किंतु भौतिक सम्प्रन्नता होते हुए भी पश्चिम देशों में प्रसन्नता का अभाव है क्यों? क्योंकि यह भौतिक प्रसन्नता स्थाई नहीं होती। अत: हमारी इच्छा की पूर्ति होने व उपभोग के पश्चात यह हमें अरुचिकर लगने लगता है। अत: हमें अस्थाई प्रसन्नता से स्थायी आनन्द की ओर अग्रसर होना होगा और यह तो अभी आरंभ है भविष्य में अभी बहुत कुछ सुधार होना शेष है। जैसे कि पहले जब हमारे वैदिक ज्ञान से जनित योग का परिचय कराया गया था तो लोग इस ज्ञान पर व्यंग्य किया करते थे। यह इसी प्रकार है कि जब तक किसी ने मीठा स्वाद न चखा हो उसे आप 'मीठा क्या होता है' उसे समझा नहीं सकते। जब तक वह उस मीठे स्वाद का अनुभव स्वयं अपनी जिव्हा से नहीं कर लेता, वह उस स्वाद व उसके लाभ से वंचित रहता है और जब वह उसके स्वाद का अनुभव कर लेता है, तो वह इस स्वाद का प्रचार-प्रसार करने लगता है। योग के समान ही अनेक पुष्प भारतीय वैदिक ज्ञान रूपी उद्यान में पुष्पित व पल्लवित हो रहे हैं किंतु सम्पूर्ण विश्व उसके लाभों व गुणों से अपरिचित है अब शनै-शनै तथाकथित आधुनिकता पुन: वैदिक ज्ञान के सुख का अनुभव कर लाभान्वित हो रही है। अमेरिका का अन्तरिक्ष अनुसंधान केंद्र 'नासा' भी भारतीय ज्ञान को जितना समझता है, उतनी ही उसकी उत्सुकता और अधिक बढ़ती जाती है। क्योंकि यह कभी न समाप्त होने वाला क्रम है। सम्पूर्ण विश्व अभी मस्तिष्क को भी पूर्णता से नहीं जान पाया है और भारतीय वैदिक ज्ञान-विज्ञान, मन और आत्मा की बात करता है। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी के 60 से 70 वर्षों के अथक प्रयासों से ही यह संभव हो पाया। महर्षि महेश योगी जी द्वारा प्रतिपादित 'भावातीत ध्यान-योग' का अभियान 7 दशक पूर्व भारत से प्रारंभ होकर विश्व के लगभग 120 देशों में चलाया गया जिसका परिणाम आज सम्पूर्ण विश्व भारतीय 'ध्यान-योग' की शरण में है एवं अपने जीवन को आनन्दित करने के लिये प्रयासरत है। भावातीत ध्यान पर सम्पूर्ण विश्व में लगभग सात सौ (700) शोध विभिन्न संस्थानों द्वारा किये गये और सभी ने इसे सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिये उपयोगी पाया। भावातीत ध्यान एक सरलतम प्रक्रिया है, जो आपका जीवन आनंदित करते हुए आपका मार्ग परमानंद की ओर अग्रेषित करती है। हमें भी इसका अभ्यास प्रतिदिन प्रात: एवं संध्या को 15 से 20 मिनट करना आवश्यक है और इसके अनुभव, अद्भुत एवं अविश्वसनीय बताये जाते हैं। नियमित इसका अभ्यास करने वाले साधक इसके अनेकानेक लाभ साझा करते हैं। तो अपने समय व जीवन को लयबद्ध करने के लिये आप भी "भावातीत-ध्यान" को सीखकर नियमित अभ्यास करने का प्रयास कर अपने जीवन को सार्थक करते हुए आनंदित रहिये।
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